हम भाषाओं के आधार पर कैसे बंट सकते हैं?” — उपराष्ट्रपति धनखड़

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भारतीय भाषाओं को लेकर समाज में फैलते मतभेदों पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि भारत एक ऐसा देश है जहाँ सैकड़ों भाषाएं और बोलियाँ बोली जाती हैं, और यह हमारी सबसे बड़ी सांस्कृतिक विरासत है।
भाषाएं हमें जोड़ने का माध्यम हैं, बांटने का नहीं। भारतीय भाषाएं हमारी पहचान, हमारी जड़ों और हमारी संस्कृति का प्रतिबिंब हैं। हमें भाषाई विविधता को गर्व के साथ अपनाना चाहिए, न कि उसे विभाजन का कारण बनाना चाहिए।”

धनखड़ जी ने यह भी स्पष्ट किया कि संविधान ने सभी भाषाओं को सम्मान दिया है और किसी भी भाषा को लेकर श्रेष्ठता या हीनता का भाव समाज में नहीं होना चाहिए।
उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि वे मातृभाषा के साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओं का भी सम्मान करें और भाषा के नाम पर क्षेत्रीयता, संकीर्णता या टकराव की राजनीति से दूर रहें।
अगर हम भाषा के आधार पर एक-दूसरे से दूरी बनाएंगे, तो यह हमारी राष्ट्रीय एकता को कमजोर करेगा। हमें समझना होगा कि हिंदी, तमिल, तेलुगु, बंगाली, गुजराती, मराठी, पंजाबी — सब हमारी हैं, भारत की हैं।”
यह वक्तव्य उन्होंने भारतीय भाषाओं की एकता और विविधता को सम्मान देने के संदर्भ में दिया। उनका आशय यह था कि भारत जैसे बहुभाषी देश में भाषाएं हमारी ताकत हैं, न कि विभाजन का कारण। सभी भारतीय भाषाएं एक-दूसरे की पूरक हैं और हमें इन्हें लेकर एकजुट रहना चाहिए, न कि अलगाव की भावना पैदा करनी चाहिए।

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