महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में दूध में मिलावट की बढ़ती समस्या को लेकर सख्त रुख अपनाया है। राज्य सरकार का कहना है कि दूध और अन्य खाद्य पदार्थों में मिलावट की घटनाएं लोगों की सेहत के लिए खतरे का कारण बन रही हैं। इसके चलते, इस गंभीर समस्या पर काबू पाने के लिए सरकार मकोका (महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गेनाइज्ड क्राइम एक्ट) कानून को लागू करने की तैयारी कर रही है। यह निर्णय विधानभवन में उपमुख्यमंत्री अजित पवार की अध्यक्षता में हुई एक महत्वपूर्ण बैठक में लिया गया।
सरकार का मानना है कि दूध में मिलावट की घटनाएं न केवल लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं, बल्कि यह सार्वजनिक विश्वास को भी प्रभावित करती हैं। बैठक में इस बात पर जोर दिया गया कि इस प्रकार की आपराधिक गतिविधियों पर सख्ती से निपटना जरूरी है, ताकि समाज में इस तरह के अपराधों पर अंकुश लगाया जा सके। उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने कहा कि मिलावटखोरी में लिप्त व्यक्तियों के खिलाफ मकोका के तहत कड़ी कार्रवाई की जाएगी, और इसके लिए कानून में आवश्यक संशोधन किए जाएंगे।
बैठक का उद्देश्य
यह बैठक राज्य में हाल ही में हुई कुछ घटनाओं के संदर्भ में आयोजित की गई थी, जिनमें ‘एनालॉग चीज’ को ‘एनालॉग पनीर’ के नाम से बेचा जाना और सोलापुर जिले के पंढरपुर तालुका के भोसे गांव में दूध मिलावट की घटना प्रमुख थी। विधानसभा में इस मामले पर ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पेश किया गया, जिसके बाद उपमुख्यमंत्री ने इस पर एक बैठक आयोजित करने का निर्णय लिया।
मकोका कानून का महत्व
मकोका एक विशेष कानून है जो संगठित अपराधों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इस कानून के तहत अगर किसी व्यक्ति या समूह के खिलाफ अपराध साबित होता है, तो उन्हें सख्त सजा दी जा सकती है, जिसमें 10 साल से लेकर उम्रभर की सजा तक का प्रावधान है। दूध में मिलावट करने वालों के खिलाफ मकोका लगाने से इस अपराध के आरोपियों को तुरंत जमानत मिलने का खतरा कम हो जाएगा और वे लंबे समय तक न्यायिक प्रक्रिया का सामना करेंगे। वर्तमान में, दूध मिलावट के आरोपियों को केवल छह महीने तक की सजा का प्रावधान है, जिससे वे जल्द जमानत पर बाहर आ जाते हैं और फिर से मिलावट करने के लिए प्रेरित हो सकते हैं।
कितनी सजा का प्रावधान?
महाराष्ट्र विधानसभा में पहले ही यह घोषणा की जा चुकी थी कि दूध में मिलावट करने वालों के लिए सजा की अवधि को तीन साल तक बढ़ाया जाएगा। इससे पहले, केवल छह महीने तक की सजा का प्रावधान था, जिससे आरोपियों को जल्द ही जमानत मिल जाती थी और वे पुनः अपराध करने के लिए स्वतंत्र हो जाते थे। अगर मकोका लागू किया जाता है और सजा को तीन साल तक बढ़ाया जाता है, तो आरोपी को जमानत मिलने में रुकावट होगी और इस अपराध के लिए सजा में भी वृद्धि होगी।
देशभर में मिलावटखोरी की समस्या
देशभर में नकली और मिलावटी दूध के मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है। अधिकांश आरोपी जिन्हें मिलावट के आरोप में पकड़ा जाता है, उन्हें एक सप्ताह के भीतर जमानत मिल जाती है। इसके बाद, 40 प्रतिशत आरोपी पुनः दूध मिलावट के आरोप में पकड़े जाते हैं। यह स्थिति और अधिक चिंताजनक है, क्योंकि इससे साफ-सुथरे दूध की आपूर्ति पर संकट खड़ा हो जाता है और आम जनता की सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
महाराष्ट्र सरकार का यह कदम दूध मिलावट जैसी गंभीर समस्या को रोकने के लिए आवश्यक है। अगर मकोका कानून लागू होता है, तो यह सुनिश्चित करेगा कि मिलावटखोरी में लिप्त लोग कड़ी सजा के दायरे में आएं और दूध की शुद्धता की रक्षा हो सके। इस कदम से सरकार का उद्देश्य दूध और अन्य खाद्य पदार्थों में मिलावट करने वालों को कड़ी सजा देना और आम जनता को सुरक्षित खाद्य सामग्री मुहैया कराना है।

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