श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके के नेतृत्व वाली सरकार की आलोचना करते हुए कहा है कि वह भारत के अदाणी समूह की मन्नार नवीकरणीय ऊर्जा परियोजना पर बात आगे बढ़ाने में विफल रही है। विक्रमसिंघे ने यह बयान उस समय दिया जब श्रीलंका सरकार और अदाणी समूह के बीच इस परियोजना को लेकर बातचीत ठप हो गई थी।
रानिल विक्रमसिंघे ने आरोप लगाया कि सरकार की गलत नीतियों और निर्णयों के कारण यह महत्वपूर्ण परियोजना अटक गई है, जिससे श्रीलंका को आर्थिक और ऊर्जा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण अवसर से हाथ धोना पड़ा। उनका कहना था कि मन्नार में स्थापित होने वाली इस नवीकरणीय ऊर्जा परियोजना से न केवल श्रीलंका को स्थिर ऊर्जा आपूर्ति मिल सकती थी, बल्कि यह भारत-श्रीलंका रिश्तों के लिए भी एक सकारात्मक कदम साबित हो सकता था।
अदाणी समूह ने मन्नार क्षेत्र में 500 मेगावाट सौर ऊर्जा परियोजना स्थापित करने का प्रस्ताव दिया था, जिसे दोनों देशों के बीच सहयोग का एक बड़ा उदाहरण माना जा रहा था। लेकिन श्रीलंका की मौजूदा सरकार ने इस परियोजना को आगे बढ़ाने में कोई स्पष्ट कदम नहीं उठाए, जिसके कारण यह परियोजना अब तक ठप पड़ी है।
विक्रमसिंघे ने कहा कि जब वह राष्ट्रपति थे, तब उन्होंने इस परियोजना के लिए ठोस कदम उठाए थे और दोनों देशों के बीच बेहतर सहयोग की दिशा में काम किया था। लेकिन वर्तमान सरकार ने अपनी असमर्थता के कारण इस परियोजना को नुकसान पहुंचाया है। उन्होंने यह भी कहा कि श्रीलंका के लिए इस समय नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में निवेश आकर्षित करना बहुत जरूरी है, खासकर जब वैश्विक जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा संकट की समस्या गंभीर हो रही है।
पूर्व राष्ट्रपति ने यह भी उल्लेख किया कि श्रीलंका को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लिए ऐसे बड़े निवेशों की आवश्यकता है। उनका मानना है कि भारत जैसे पड़ोसी देश के साथ सहयोग बढ़ाकर श्रीलंका अपनी ऊर्जा संकट को हल कर सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को इस मुद्दे पर तत्काल कदम उठाना चाहिए और अपनी नीतियों को इस प्रकार से बदलना चाहिए, ताकि श्रीलंका को इस परियोजना के फायदे मिल सकें।
रानिल विक्रमसिंघे का कहना था कि यदि यह परियोजना शुरू हो जाती, तो इससे न केवल ऊर्जा आपूर्ति में सुधार होता, बल्कि दोनों देशों के बीच आर्थिक और राजनीतिक रिश्तों को भी मजबूती मिलती। उन्होंने श्रीलंका सरकार से अपील की कि वह इस मुद्दे को गंभीरता से ले और इसे आगे बढ़ाने के लिए उचित कदम उठाए।
यह घटना श्रीलंका के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत है कि उसे अपनी ऊर्जा नीति और निवेश आकर्षित करने की रणनीति में सुधार करने की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में ऐसी परियोजनाओं से वह लाभ उठा सके।

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