मोदी–पुतिन मुलाकात से तय हुए नए लक्ष्य, बदलते विश्व-क्रम पर क्या होगा असर?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक बार फिर नई हलचल पैदा कर दी है। दोनों नेताओं के बीच हुई चर्चा सिर्फ द्विपक्षीय संबंधों तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसका असर आने वाले वर्षों में वैश्विक शक्ति-संतुलन पर भी देखा जा सकता है। मुलाकात में कई नए लक्ष्य और साझा प्राथमिकताएँ तय की गईं, जिनसे भारत-रूस साझेदारी एक नए चरण में प्रवेश करती दिखाई देती है।

भारत-रूस के बीच तय हुए प्रमुख नए लक्ष्य

1. आर्थिक सहयोग को नई ऊँचाइयों पर ले जाना

दोनों पक्षों ने साफ संकेत दिया कि वे आपसी व्यापार को तेज़ी से बढ़ाना चाहते हैं। आगामी वर्षों में ऊर्जा, खनिज, मशीनरी, तकनीक और कृषि-व्यापार के क्षेत्र में बड़े निवेश और संयुक्त परियोजनाएँ शुरू करने की योजना है।

2. ऊर्जा सुरक्षा में दीर्घकालिक साझेदारी

भारत के लिए तेल और गैस की स्थिर आपूर्ति पर जोर दिया गया। रूस ने संकेत दिया कि वह भारत को ऊर्जा आपूर्ति की प्राथमिकता देगा, जबकि भारत ऊर्जा-संबंधित अवसंरचना, रिफाइनिंग और भंडारण परियोजनाओं में निवेश बढ़ाने को तैयार है।

3. रक्षा और तकनीकी सहयोग का विस्तार

मुलाकात में केवल हथियार खरीद पर नहीं, बल्कि आधुनिक रक्षा तकनीक के सह-निर्माण और सह-विकास पर सहमति बनी। इससे भारत की आत्मनिर्भर रक्षा नीति को बड़ा सहारा मिल सकता है।

4. राष्ट्रीय मुद्राओं में व्यापार बढ़ाना

डॉलर आधारित व्यापार पर निर्भरता कम करने और वैश्विक वित्तीय दबावों से बचने के लिए दोनों देश अपने स्थानीय मुद्रा-आधारित लेन-देन को बढ़ाने पर काम करेंगे।

5. कनेक्टिविटी, रोजगार और मानव संसाधन सहयोग

दोनों देशों ने श्रम-सहयोग, शिक्षा, परिवहन संपर्क और डिजिटल क्षेत्रों को जोड़ने की दिशा में स्पष्ट इच्छा जताई। इससे व्यापार के अलावा जन-से-जन संबंध भी मजबूत होंगे।

विश्व-व्यवस्था पर संभावित प्रभाव

1. बहुध्रुवीय विश्व की ओर मजबूत कदम

भारत और रूस दोनों लंबे समय से बहुध्रुवीय दुनिया का समर्थन करते हैं, जहां कोई एक देश या ब्लॉक पूरी दुनिया की नीति तय नहीं करता। यह मुलाकात उस दिशा में एक बड़े कदम के रूप में देखी जा रही है।

2. पश्चिमी प्रभाव के समानांतर नई शक्ति-धुरी

भारत-रूस की निकटता अमेरिका-यूरोप के नेतृत्व वाले पारंपरिक शक्ति-संरचना के सामने एक संतुलित विकल्प प्रदान कर सकती है। इससे वैश्विक राजनीति में नए समीकरण बन सकते हैं।

3. वैश्विक ऊर्जा बाजार पर असर

दोनों देशों की ऊर्जा साझेदारी से एशिया-केन्द्रित ऊर्जा व्यापार मजबूत होगा। यह पश्चिमी देशों के प्रभुत्व को चुनौती दे सकता है, खासकर तेल और गैस के बाजार में।

4. हथियार और रक्षा-तकनीक में नए गठबंधन

सह-निर्माण और तकनीकी साझेदारी से हथियारों का भू-राजनीतिक मानचित्र बदल सकता है। भारत को इससे रणनीतिक स्वतंत्रता मिलेगी, और रूस को स्थायी साझेदार।

5. डॉलर-निर्भरता में संभावित कमी

स्थानीय मुद्राओं में व्यापार का विस्तार विश्व-वित्तीय व्यवस्था में बदलाव की दिशा में एक महत्वपूर्ण संकेत है। यह वैश्विक मुद्रा-प्रणाली के स्वरूप पर दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकता है।

भविष्य की रणनीतिक तस्वीर

मुलाकात से यह साफ दिखता है कि भारत और रूस आने वाले दशक में एक-दूसरे के लिए अनिवार्य साझेदार बने रहेंगे। भारत ऊर्जा और रक्षा-तकनीक के क्षेत्र में लाभ उठाएगा, जबकि रूस तेजी से बढ़ते भारतीय बाजार और निवेश क्षमताओं से फायदा उठाएगा।

यह साझेदारी न सिर्फ दोनों देशों को लाभ पहुंचाएगी, बल्कि बदलती दुनिया में एक नए संतुलन और नए शक्ति-मानचित्र को भी आकार दे सकती है।

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