जर्मनी ने सैन्य सेवा-मॉडल में बदलाव पर सहमति जताई, ‘स्वैच्छिक-सेवा + जरूरत पड़ने पर अनिवार्य’ का फॉर्मूला”

यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश Germany ने अपने सैन्य बलों को पुनर्गठित करने के लिए एक नए सेवा-मॉडल पर समझौता कर लिया है। उसके सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल प्रमुख पार्टियों ने इस निर्णय को गुरुवार को सार्वजनिक किया।
–सेवा का आधार स्वैच्छिक होगा — यानी युवाओं को अपनी इच्छा से सेना में शामिल होने का विकल्प मिलेगा। –
साथ ही, अगर स्वैच्छिक भर्ती पर्याप्त संख्या में नहीं हो पाई, तो अनिवार्य कॉल-अप (कॉनस्ट्रिप्शन) लागू करने का विकल्प सुरक्षित रखा गया है।
इस योजना के अंतर्गत 18 वर्ष के युवाओं को एक सर्वे या स्वास्थ्य-मूल्यांकन से गुजरना होगा, जिससे उनकी सेवा देने की क्षमता और रूचि का आकलन होगा।
मौजूदा सक्रिय सैनिकों की संख्या (लगभग 1.82 लाख) को बढ़ाकर लगभग 2.55-2.70 लाख करने का लक्ष्य रखा गया है तथा अतिरिक्त ≈2 लाख रिजर्व सैनिक तैयार करने का इरादा है।
यह बदलाव देश की रक्षा तैयारियों को बढ़ाने, बदलते वैश्विक सुरक्षा माहौल में अधिक सक्षम बनने की दिशा में है।
NATO एवं यूरोपीय सुरक्षा ढांचे से जुड़े दबाव के बीच जर्मनी पर यह चुनौती थी कि अपनी सेना को आधुनिक सुरक्षा आवश्यकताओं के अनुरूप बनाए।

ठंडे-युद्ध के बाद जर्मनी ने अपने सैनिकों की संख्या में कटौती की थी और अब नए खतरे, विशेषकर रूस-यूक्रेन संघर्ष की पृष्ठभूमि में, उसे पुनर्स्थापित करना चाह रहा है।
स्वैच्छिक मॉडल को कामयाब बनाने के लिए सेवा को आकर्षक बनाना होगा — बेहतर वेतन, सुविधाएँ, प्रशिक्षण और करियर रास्ते महत्वपूर्ण होंगे।

यदि भर्ती संख्या अपेक्षा के अनुरूप नहीं हुई, तो अनिवार्य सेवा लागू करना संवैधानिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से विवादित हो सकता है।

युवा वर्ग में सैन्य सेवा के प्रति रूचि तथा नागरिक-सेना संबंधी दृष्टिकोण में बदलाव जरूरी होगा ताकि भर्ती-लक्ष्य पूरे हो सकें।

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