मोदी संग गर्मजोशी, संघ से नजदीकी – क्या भाजपा में वसुंधरा राजे का “वनवास” खत्म होने वाला है?

राजस्थान की राजनीति में हलचल तेज़ हो गई है। लंबे समय से हाशिये पर मानी जा रही पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अचानक फिर से सुर्खियों में हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संघ के शीर्ष नेताओं से उनकी हालिया मुलाकात ने पार्टी के भीतर शक्ति संतुलन पर नई बहस छेड़ दी है। सवाल यह है कि क्या भाजपा में वसुंधरा का “वनवास” अब समाप्त होने की कगार पर है?

मंच पर गर्मजोशी, राजनीति में संकेत

हाल ही में एक सार्वजनिक मंच पर वसुंधरा राजे और प्रधानमंत्री मोदी की आत्मीयता भरी मुलाकात सिर्फ एक औपचारिक दृश्य नहीं थी। दोनों नेताओं के बीच मुस्कुराहट, हाथ मिलाना और बातचीत ने यह संदेश दिया कि दिल्ली दरबार और नागपुर (संघ) अब वसुंधरा को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते।

भाजपा में गुटबाजी और समीकरण

राजस्थान भाजपा लंबे समय से गुटों में बंटी हुई है। एक ओर केंद्रीय नेतृत्व राज्य में नए चेहरों को आगे लाना चाहता है, दूसरी ओर वसुंधरा का ज़मीनी जनाधार पार्टी की मजबूरी बना हुआ है। यही वजह है कि उनकी अनदेखी ने कई बार संगठन को अंदरूनी कलह में झोंका है। अब मोदी और संघ से बढ़ती नज़दीकियां संकेत देती हैं कि पार्टी नेतृत्व को फिर से “अनुभव बनाम प्रयोग” की जद्दोजहद झेलनी पड़ सकती है।

संघ की भूमिका और वसुंधरा की वापसी

संघ हमेशा से राजस्थान भाजपा के संगठनात्मक फैसलों में निर्णायक भूमिका निभाता रहा है। माना जा रहा है कि लोकसभा और आगामी विधानसभा चुनावों से पहले संघ भी यह समझ चुका है कि वसुंधरा को पूरी तरह हाशिये पर रखना राजनीतिक जोखिम उठाने जैसा होगा।

आगे क्या?

अगर वसुंधरा को सक्रिय भूमिका मिलती है, तो इससे राजस्थान भाजपा में शक्ति संतुलन पूरी तरह बदल सकता है। उनका जनाधार, खासकर महिला वोटरों और ग्रामीण इलाकों में, भाजपा को बड़ा फायदा दिला सकता है। लेकिन पार्टी में उनके विरोधी खेमे के लिए यह करारा झटका होगा।

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