अदालत ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया

दिल्ली स्थित अपने सरकारी आवास से भारी मात्रा में नकदी मिलने से जुड़ी इन-हाउस जांच समिति की रिपोर्ट को चुनौती दी थी,और सीजेआई संजीव खन्ना द्वारा उनको हटाने की सिफारिश को चुनौती देने का प्रयास किया था ।याचिका को अनंतिम रूप से न स्वीकारने योग्य (non-maintainable) करार दिया गया, क्योंकि यशवंत वर्मा ने जांच समिति की कार्यवाही में भाग लिया था और बाद में ही उसके अधिकार पर सवाल उठाए ।कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इन‑हाउस समिति का गठन और प्रक्रिया वैध है, और यह कोई “पैरेलल या अतिरिक्त संवैधानिक प्राधिकारी” नहीं है ।सीजेआई द्वारा महाभियोग की कार्यवाही प्रारंभ करने की सिफारिश को भी अदालत ने वैध माना जिससे तय होता है कि आगे की प्रक्रिया संसद द्वारा निर्धारित संवैधानिक मार्ग से हो सकती है ।

अदालत ने यह टिप्पणी की कि ये याचिका “ऐसे नहीं दाखिल की जानी चाहिए थी” (this petition should not have come in this form), और यशवंत वर्मा को यह बताकर कहा कि उन्होंने समिति के समक्ष पेश आकर कार्रवाई को स्वीकृति दी, फिर प्रक्रिया पर सवाल उठाया ।सुनवाई के दौरान पीठ ने पूछा कि यदि प्रक्रिया संवैधानिक रूप से गलत थी, तो वह पहले क्यों इस समिति के समक्ष पेश हुए? यह उनकी कुल आचरण और व्यवहार पर प्रश्नचिह्न लगाता है ।मार्च 2025 में जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास पर आग लगने के बाद एक स्टोर रूम में कथित तौर पर जली हुई नकदी मिली थी। तीन-न्यायाधीशीय समिति द्वारा लगभग 55 गवाहों से पूछताछ और घटनास्थल का दौरा किया गया था, जिसमें उन्हें “गंभीर कदाचार” में दोषी पाया गया ।

इसके बाद सीजेआई संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री को महाभियोग की सिफारिश भेजी। यह प्रस्ताव संसद में पेश भी हो चुका है ।अरविंद अधिवक्ता एवं अन्य लोग न्यायिक कार्यवाही की मांग कर चुके थे (जैसे FIR दर्ज करने की), लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन याचिकाओं को खारिज कर दिया और कहा कि जांच पूरी होने तक कोई कार्रवाई नहीं होगी ।इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने स्थानांतरण का विरोध करते हुए कहा था कि “हम कूड़ेदान नहीं हैं” (We are not a trash bin), लेकिन उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम ने तबादले की सिफारिश की और वर्मा को पुनः इलाहाबाद हाई कोर्ट भेजा गया ।निर्णय तिथि 7 अगस्त 2025याचिका का उद्देश्य जांच समिति की रिपोर्ट और सीजेआई की बर्खास्तगी सिफारिश को चुनौती देनासुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा याचिका स्वीकार्य नहीं, जांच प्रक्रिया वैध और सहीप्रमुख फैसले महाभियोग की सिफारिश वैध, अगले कदम संसद में होंगे
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय स्पष्ट संदेश देता है कि न्यायिक आचरण और पारदर्शिता को गंभीरता से लिया जा रहा है, और किसी भी तरह के भ्रष्टाचार-संबंधित आरोपों को कानूनी प्रक्रियाओं के तहत जांचा जाएगा, बिना पक्षपात या विलंब के ।

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