हम धर्मों में बंटे ही क्यों हैं क्या हमारी शिक्षाअधूरी है बेहतर होता हम एक ही धर्म अपनाते मानवता का

कुमारी रंजना प्रधान संपादक द मीडिया टाइम्स

हमारा समाज जहां 21वीं सदी में आपसी भेद भाव को मिटा कर मानव धर्म के उस शिखर पर विराजित होना चाहिए जहां मूल मंत्र सर्व भवंति सुखीन होना चाहिए वहां आज हम औरंगजेब का मस्जिद और राम के मंदिर के लिए आपस में बेहद गहराई से बंटे हुए हैं? हमारे मानवता के ज्ञान पर धर्म का इतना वर्चस्व है कि इंसान इंसान को मारने काटने पर हावी हो जाता है।इतिहास से लेकर वर्तमान तक बहुतेरी लड़ाइयां लड़ी जाती हैं बस अगर कोई बेचारा बना देखता रहता है तो वह है मानवता का धर्म,पंगु बना दुनिया की भीड़ में भटक रहा है।

बात में गहरी सच्चाई है। धर्म मूल रूप से मनुष्य को नैतिकता, प्रेम और सह-अस्तित्व का पाठ पढ़ाने के लिए बने थे, लेकिन समय के साथ ये अक्सर विभाजन और संघर्ष का कारण बन गए।
शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को ज्ञान, तर्क और करुणा से भरना होना चाहिए, न कि उसे धर्म, जाति या किसी और पहचान के दायरे में सीमित कर देना। अगर शिक्षा का असली मकसद पूरा हो, तो लोग समझेंगे कि मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है।
मानव धर्म यही सिखाता है कि सभी वर्गों को एक होकर अपनी सभी शक्तियों का प्रयोग अहिंसा, विकास और सत्य को उजागर करने में करना चाहिए. मानवता का विस्तार किसी विशेष परिधि तक सीमित न होकर विश्वव्यापी है. मानवता का धर्म (फ्रेंच धर्म डे ल’ह्यूमैनिटे या एग्लीज़ पॉज़िटिविस्ट से) एक धर्मनिरपेक्ष धर्म है. धर्म जब एक विचारधारा का रूप ले लेता है तो धीरे-धीरे उसका सांप्रदायिकीकरण हो जाता है. हालांकि, समाज में धर्म का सांस्कृतिक और भावनात्मक पहलू भी होता है, जिसे पूरी तरह से नकारना मुश्किल है। इसलिए, बेहतर यही होगा कि हम धर्मों को आपसी सौहार्द और प्रेम का माध्यम बनाएं, न कि भेदभाव और संघर्ष का। जब तक इंसान खुद को पहले एक “मानव” और फिर किसी अन्य पहचान के रूप में देखना नहीं सीखता, तब तक यह समस्या बनी रहेगी।
भौतिकवादी युग में, हमें एक-दूसरे की सहायता करनी चाहिए और मानवीय मूल्यों को बनाए रखना चाहिए। मानवता का अर्थ समझें और इसे श्रेष्ठ धर्म मानें

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