भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहां हर नेता और राजनेता के पास अपनी कार्यशैली और दिशा होती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो भारतीय राजनीति के एक अत्यंत प्रभावशाली और लोकप्रिय नेता माने जाते हैं, उनके उत्तराधिकारी की चर्चा इस समय गर्म हो रही है। यह सवाल इसलिए उठता है क्योंकि यह न केवल भाजपा या भारतीय राजनीति के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि समग्र रूप से देश की दिशा और नेतृत्व की स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण है। लेकिन इस विषय पर इतनी जल्दबाज़ी क्यों?
पिछले कुछ समय से, प्रधानमंत्री मोदी जी के उत्तराधिकारी की खोज को लेकर तरह-तरह की चर्चाएँ हो रही हैं। उनके करीबी राजनीतिक सहयोगी और विरोधी भी इस मुद्दे पर अपनी राय व्यक्त कर रहे हैं। यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि नरेंद्र मोदी जी ने अपने राजनीतिक करियर में कई बार यह स्पष्ट किया है कि वे अपनी राजनीति में किसी उत्तराधिकारी की परिकल्पना नहीं करते। उन्होंने हमेशा यह कहा है कि उनकी प्राथमिकता देश की सेवा करना है, न कि सत्ता की आकांक्षा रखना। फिर भी, जब भाजपा के अंदर और बाहर इस सवाल पर चर्चा होती है, तो यह सवाल उठता है कि आखिर इतनी जल्दबाज़ी क्यों है?
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री, मान. देवेंद्र फडणवीस जी ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने यह कहा कि “पिता के रहते उत्तराधिकारी की तलाश हमारी संस्कृति नहीं, यह मुग़ल संस्कृति है।” उनका यह बयान न केवल भाजपा के अंदर की राजनीति को लेकर एक अहम टिप्पणी है, बल्कि यह भारतीय राजनीति और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में भी एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाता है। फडणवीस जी के बयान का संदर्भ यह है कि भारतीय संस्कृति में हमेशा वरिष्ठता और अनुभव की कद्र की जाती है, और उत्तराधिकारी की तलाश किसी भी नेता के जीवनकाल में एक तरह की जल्दबाज़ी और परंपराओं के खिलाफ हो सकती है।
मुग़ल साम्राज्य के दौरान उत्तराधिकारी की चर्चा एक राज्य के शासन की स्थिरता और साम्राज्य की शक्ति के रूप में देखी जाती थी। यह एक तरह की पारंपरिक और कभी-कभी अनैतिक राजनीति का हिस्सा बन गई थी, जहाँ शाही परिवारों के भीतर सत्ता की लड़ाईयाँ होती थीं। फडणवीस जी का यह बयान यह स्पष्ट करने की कोशिश करता है कि भारतीय राजनीति में इस तरह की जल्दबाज़ी और अंदरूनी प्रतिस्पर्धा की कोई जगह नहीं होनी चाहिए, खासकर तब जब कोई नेता सक्रिय रूप से जनता की सेवा कर रहा हो।
यह बात भी ध्यान में रखने योग्य है कि भाजपा के भीतर भी कई युवा नेता हैं जो आगे बढ़ने की इच्छा रखते हैं और जिनकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है। लेकिन मोदी जी के नेतृत्व में पार्टी का प्रचार-प्रसार और कार्यशैली इतनी सशक्त है कि फिलहाल उनके उत्तराधिकारी की बात करना जल्दबाज़ी लगता है।यह सवाल उठता है कि क्या हमें मोदी जी उत्तराधिकारी के लिए इतनी जल्दबाज़ी दिखानी चाहिए, या हमें समय के साथ देखना चाहिए कि कौन सा नेता पार्टी और देश के लिए सबसे उपयुक्त रहेगा? राजनीति में स्थिरता और संतुलन की जरूरत है, और यह सवाल समय और परिस्थितियों के साथ स्वयं जवाब प्राप्त करेगा।

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