संयुक्त राष्ट्र (UN) की सुरक्षा परिषद ने अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा पेश की गई 20-सूत्रीय गाजा शांति योजना को मंजूरी दे दी है। इस निर्णय को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा कूटनीतिक कदम माना जा रहा है, लेकिन फिलिस्तीनी गुट हमास ने इसे तुरंत खारिज कर दिया है, और उन्होंने विशेष रूप से अंतरराष्ट्रीय बल की तैनाती के प्रस्ताव को अपनी संप्रभुता के लिए खतरा बताया है।
प्रस्ताव की मुख्य बातें: क्या है 20-सूत्रीय योजना?
20 बिंदुओं का एजेंडा
ट्रंप की योजना में गाजा पट्टी में स्थिरता लाने के लिए विस्तृत रूपरेखा दी गई है। इसमें युद्धविराम, मानवीय सहायता, बंदियों की रिहाई और पुनर्निर्माण की योजनाएँ शामिल हैं।
–. अंतरराष्ट्रीय शांति बल (ISF)
प्रस्ताव में गाजा में अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा बल (ISF) तैनात करने का सुझाव है, जिसे इस्लामी प्रतिरोध गुटों से हथियारबंद समूहों को निरस्त्रीकृत करने और मानवीय कार्यों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी दी जाएगी। –
Board of Peace” — ट्रांज़िशनल प्रशासन
योजना के अनुसार, एक Board of Peace बनाया जाएगा, जिसकी अध्यक्षता ट्रंप करेंगे। यह बोर्ड अगले दो वर्षों में गाजा के शासन और पुनर्निर्माण की देखरेख करेगा।
तकनीokratिक प्रशासन
गाजा के नागरिक प्रशासन के लिए एक तकनीokratिक समिति बनाए जाने का प्रस्ताव है, जिसे अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षण में चलाया जाएगा।
इजरायली सेना की हिस्साबंदी
प्रस्ताव के मुताबिक, गाजा से इजरायली सैन्य बल धीरे-धीरे हटेंगे, लेकिन उनकी कुछ मौजूदगी सुरक्षा की सीमाओं (perimeter) में बनी रह सकती है।
गाजा के पुनर्निर्माण और मानवीय सहायता
युद्ध-ग्रस्त गाजा का पुनर्निर्माण और नागरिकों के लिए मानवीय सहायता सुनिश्चित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों को शामिल करने की बात कही गई है।
स्वतंत्रता की संभावनाएं
प्रस्ताव में भविष्य में फिलिस्तीनी स्व-निर्णय की राह बनाने का जिक्र है — लेकिन यह स्पष्ट रूप से नहीं कहा गया है कि राज्य स्थापना कब और कैसे होगी।
सुरक्षा परिषद की रुख और मतदानयह प्रस्ताव 13-0 वोट से पारित हुआ; केवल रूस और चीन ने मतदान से परहेज़ किया।
यूएस राजदूत माइकल वाल्ट्ज़ ने इस फैसले को एक ऐतिहासिक क्षण करार दिया और कहा कि यह ट्रंप की दूरदृष्टि को दर्शाता है।
प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि अंतरराष्ट्रीय बल की तैनाती “संयुक्त कमांड के अधीन” होगी, जिसे Board of Peace स्वीकार्य बनाएगा।
हमास ने इस प्रस्ताव को स्वीकृति देने से साफ मना कर दिया है। उनका कहना है कि यह गाजा पर एक अंतरराष्ट्रीय ट्रस्टशिप थोपता है, जो फिलिस्तीनी आत्म-निर्णय के सिद्धांत को ठेस पहुंचाता है।
संगठन ने अंतरराष्ट्रीय बल को “संघर्ष का पक्ष” बनने का आरोप लगाया है क्योंकि प्रस्ताव उन्हें हथियार बंद करने और निरस्त्रीकरण की भूमिकाएं देता है।
हमास का यह भी कहना है कि इस तरह की पॉवर डिप्लॉयमेंट उनके नियंत्रण और स्वायत्तता को कम करती है, और इसे उनकी राजनीतिक प्रतिबद्धताओं के खिलाफ माना जाना चाहिए।
भारत ने इस प्रस्ताव को ऐतिहासिक कदम कहा है। वहीं, भारत की स्थिति यह रही है कि दो-राष्ट्र समाधान (इन्हीं सीमाओं में इजरायल और फिलिस्तीन दोनों का सुरक्षित अस्तित्व) ही स्थिरता की कुंजी है।
मुस्लिम दुनिया में इस प्रस्ताव को लेकर मतभेद मौजूद हैं। कुछ देश इसे समर्थन दे रहे हैं, लेकिन पाकिस्तान, तुर्की और ईरान जैसी कुछ प्रमुख ताकतों ने चिंता व्यक्त की है कि यह प्रस्ताव फिलिस्तीनी हितों को पूरी तरह प्रतिबिंबित नहीं करता।
विश्लेषकों का कहना है कि प्रस्ताव की सफलता प्रमुख रूप से क्रियान्वयन पर निर्भर करेगी — यानी अंतरराष्ट्रीय बल की तैनाती, गाजा में प्रशासनिक नियंत्रण और पुनर्निर्माण के संसाधन कैसे और किसकी देखरेख में उपयोग किए जाते हैं।

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