वक्फ संशोधन विधेयक धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला : वाई एस शर्मिला रेड्डी

विजयवाड़ा: कांग्रेस की आंध्र प्रदेश इकाई की प्रमुख वाई एस शर्मिला रेड्डी ने बुधवार को वक्फ संशोधन विधेयक की आलोचना करते हुए इसे धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला करार दिया। उन्होंने इस विधेयक को संविधान द्वारा मुसलमानों को दी गई धार्मिक स्वतंत्रता को कमजोर करने का प्रयास बताया। रेड्डी ने कहा कि इस विधेयक का उद्देश्य अल्पसंख्यकों को दबाना और उनकी धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करना है, जो कि भारतीय संविधान के मूल्यों के खिलाफ है।

वाई एस शर्मिला ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि यह विधेयक न केवल मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता को सीमित करता है, बल्कि यह भारतीय समाज के ताने-बाने को भी नुकसान पहुंचाने का प्रयास है। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार अल्पसंख्यकों को कमजोर करने और उनके अधिकारों को छीनने के लिए विभिन्न विधायिका में बदलाव कर रही है, और वक्फ संशोधन विधेयक इस रणनीति का एक हिस्सा है।

वक्फ संशोधन विधेयक, जिसे हाल ही में संसद में पेश किया गया, वक्फ बोर्डों की संरचना में बदलाव करने और उनके कार्यों में कुछ नए प्रावधानों को लागू करने की बात करता है। इस विधेयक के तहत वक्फ बोर्डों को अधिक अधिकार दिए गए हैं, जिससे उनकी संपत्तियों और प्रशासन में अधिक हस्तक्षेप हो सकता है। विपक्षी दलों का आरोप है कि इससे मुसलमानों के धार्मिक मामलों में सरकार का हस्तक्षेप बढ़ेगा, और यह उनके धार्मिक अधिकारों को प्रभावित करेगा।

शर्मिला रेड्डी ने कहा कि इस विधेयक को मुस्लिम समुदाय के खिलाफ एक साजिश के रूप में देखा जा रहा है। उन्होंने यह भी दावा किया कि केंद्र सरकार की यह कोशिश संविधान के धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ है। रेड्डी ने केंद्र सरकार से अपील की कि वह इस विधेयक को वापस ले और अल्पसंख्यकों के अधिकारों का सम्मान करें।

कांग्रेस नेता ने आगे कहा कि सरकार को यह समझना चाहिए कि वक्फ संपत्तियां केवल एक धार्मिक समुदाय की नहीं, बल्कि समाज के सभी वर्गों की धरोहर होती हैं। ऐसे में, इस तरह के संशोधनों से केवल एक विशेष समुदाय के अधिकारों पर हमला किया जाएगा, जो कि भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरनाक हो सकता है।

इस विधेयक के खिलाफ कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने विरोध जताया है, और उन्होंने इसे भारत के संविधान और धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ बताया है। वे इसे अल्पसंख्यकों की आवाज को दबाने की कोशिश मानते हैं और इसे वापस लेने की मांग कर रहे हैं। इस बीच, केंद्र सरकार ने विधेयक को मुसलमानों के धर्म और उनके अधिकारों को संरक्षित करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम बताया है।

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