नई श्रम नीति पर बवाल ट्रेड यूनियनों ने कहा ‘मज़दूर अधिकारों की अनदेखी’

केंद्र सरकार द्वारा पेश की गई नई ड्राफ्ट राष्ट्रीय श्रम नीति को लेकर देशभर की प्रमुख सेंट्रल ट्रेड यूनियनों ने कड़ा विरोध जताया है। यूनियनों का कहना है कि यह नीति श्रमिकों के वास्तविक हालात को समझने में विफल है और यह मजदूरों के अधिकारों को मजबूत करने के बजाय उन्हें कमज़ोर करने की कोशिश करती है।

यूनियनों का आरोप: नीति का मकसद अधिकार नहीं, ‘कर्तव्य’ थोपना

सभी प्रमुख ट्रेड यूनियनों ने संयुक्त बयान जारी करते हुए कहा कि नई ड्राफ्ट नीति मजदूरों के अधिकारों को कम करने का प्रयास करती दिख रही है। उनके अनुसार, दस्तावेज़ में श्रम को एक ‘संसाधन’ के रूप में नहीं, बल्कि ‘पवित्र कर्तव्य’ के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो आधुनिक श्रम कानूनों और अंतरराष्ट्रीय श्रम मानकों के विपरीत है।

यूनियनों ने यह भी कहा कि यह नीति एक ‘आदर्शवादी परियोजना’ की तरह लगती है, जिसका उद्देश्य श्रमिकों को संरक्षण देने की बजाय उन्हें अधिक अनुशासित और उत्पादक बनाने पर केंद्रित है।

“जमीनी हकीकतों से दूर” — यूनियनें

ट्रेड यूनियनों ने ड्राफ्ट पर कई गंभीर सवाल उठाए—

यह नीति असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों की समस्याओं को उल्लेखित नहीं करती

न्यूनतम वेतन, सामाजिक सुरक्षा और सुरक्षित कार्य स्थितियों पर स्पष्ट दिशा नहीं है

निजीकरण और कॉन्ट्रैक्ट आधारित रोजगार को बढ़ावा देने की आशंका जताई गई

श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के एकीकरण और फंडों के उपयोग पर पारदर्शिता नहीं

यूनियनों ने कहा कि नीति का मसौदा देश भर में काम कर रहे करोड़ों मजदूरों की वास्तविक परिस्थितियों का प्रतिनिधित्व नहीं करता।

श्रम मंत्री का आश्वासन: “सुझावों के बाद बदल सकता है ड्राफ्ट”

विवाद बढ़ने के बाद केंद्रीय श्रम मंत्री ने स्पष्ट किया कि यह केवल एक ड्राफ्ट नीति है, अंतिम दस्तावेज़ नहीं। उन्होंने कहा कि सरकार यूनियनों सहित सभी हितधारकों के सुझावों का स्वागत करती है और परामर्श प्रक्रिया पूरी होने तक इसमें बदलाव संभव हैं।

मंत्री ने यह भी आश्वासन दिया कि नीति का अंतिम स्वरूप सभी पक्षों के विचारों को ध्यान में रखकर ही बनाया जाएगा।

आगे क्या?

ट्रेड यूनियनों ने सरकार से ड्राफ्ट को वापस लेकर नई, पारदर्शी और श्रमिक-केंद्रित नीति तैयार करने की मांग की है। आने वाले हफ्तों में सरकार और यूनियनों के बीच कई दौर की बैठकें होने की उम्मीद है।

नई श्रम नीति को लेकर जारी यह खींचतान आने वाले दिनों में और तीखी हो सकती है, क्योंकि यह देश की आर्थिक और श्रम व्यवस्था पर व्यापक प्रभाव डालने वाली है।

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