भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन को लेकर काफी चर्चा है,

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन को लेकर काफी चर्चा है, लेकिन अभी तक अंतिम नाम तय नहीं हुआ है। इसमें देरी के पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं, जिनमें प्रमुख है प्रदेश अध्यक्षों का चयन लंबित।
भाजपा के संविधान के अनुसार, राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव तभी संभव है जब कम से कम देश के आधे राज्यों में प्रदेश अध्यक्षों का चुनाव हो जाए।
वर्तमान में कई राज्यों में प्रदेश अध्यक्षों की नियुक्ति या पुनर्गठन की प्रक्रिया जारी है, जिसमें जुलाई तक का समय लग सकता है।उत्तर प्रदेश (UP) और मध्य प्रदेश (MP) का फैक्टरभाजपा के नए अध्यक्ष के चुनाव में लगातार देरी हो रही है। अब खबर है कि जेपी नड्डा के विकल्प पर अगस्त तक ही फैसला हो सकेगा। जून का महीना लगभग आधा बीत चुका है और यूपी, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्यों के अध्यक्षों का ही चुनाव नहीं हुआ है। ऐसे में इन राज्यों के अध्यक्ष तय होने के बाद ही भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर फैसला लेगी। माना जा रहा है कि जुलाई तक का वक्त प्रदेश अध्यक्षों के चुनाव में ही जाएगा और उसके बाद ही राष्ट्रीय अध्यक्ष पर फैसला हो सकेगा। भाजपा के संविधान के अनुसार राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के लिए कम से कम देश के आधे राज्यों के प्रदेश अध्यक्षों का चुनाव होना जरूरी है।

ये दोनों राज्य भाजपा के लिए राजनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
इसके अलावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भी मशविरा होना बाकी है। पार्टी नेतृत्व चाहता है कि संघ की सहमति से ही अध्यक्ष चुना जाए। ऐसा इसलिए क्योंकि अध्यक्ष पद पर आरएसएस चाहेगा कि उसके बैकग्राउंड का नेता ही आए। भाजपा और संघ की लीडरशिप अकसर प्रदेश अध्यक्ष से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष तक के पदों पर किसी बाहरी को महत्व नहीं देना चाहते। पार्टी लीडरशिप को लगता है कि संगठन की कमान वैचारिक रूप से मजबूत लोगों के हाथों में ही होनी चाहिए। यही वजह है कि जिन लोगों के नाम राष्ट्रीय अध्यक्ष की रेस में बताए जा रहे हैं, उनमें से ज्यादातर लोग कभी संघ में रहे हैं या फिर खांटी भाजपाई हैं।

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