सुप्रीम कोर्ट में एक अहम बदलाव देखने को मिला जब मुख्य न्यायाधीश (CJI) की अध्यक्षता वाली पीठ ने वरिष्ठ वकीलों द्वारा मामलों का मौखिक उल्लेख करने पर नाराजगी जताई। बुधवार को जैसे ही वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी एक मामले का ज़िक्र करने के लिए खड़े हुए, जस्टिस बी.आर. गवई ने स्पष्ट शब्दों में कहा:एक बड़ी मांग है — हमें वरिष्ठ वकीलों द्वारा मौखिक उल्लेख करना बंद कर देना चाहिए।”
CJI की अदालत में अक्सर वकील तत्काल सुनवाई की मांग को लेकर मौखिक उल्लेख करते हैं, लेकिन अब यह संदेश दिया गया है कि अदालत में प्रक्रिया का पालन करते हुए उचित माध्यम से ही मामलों की सूचीबद्धता की मांग की जाए।इस फैसले को न्यायिक व्यवस्था में अनुशासन और निष्पक्षता की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है। इससे जूनियर वकीलों को भी समान अवसर मिलने की उम्मीद जताई जा रही है।
इस टिप्पणी ने पूरे न्यायिक समुदाय का ध्यान खींचा। मुख्य न्यायाधीश की पीठ का यह रुख यह संकेत देता है कि सुप्रीम कोर्ट अब अदालत में मौखिक व्यवस्था की बजाय ज्यादा पारदर्शी और प्रक्रियागत ढांचे को अपनाने की दिशा में अग्रसर है

मौखिक उल्लेख का तात्पर्य होता है जब वकील किसी अर्जेंसी या विशेष कारण से यह निवेदन करते हैं कि किसी मामले को तत्काल सूचीबद्ध (लिस्टेड) किया जाए। यह प्रक्रिया आमतौर पर कोर्ट की कार्यवाही शुरू होने से पहले होती है।
अब तक वरिष्ठ वकीलों को यह विशेषाधिकार प्राप्त था कि वे सीधे CJI की बेंच में खड़े होकर अपने मुवक्किल का मामला जल्द सुनवाई के लिए रखवा सकते थे।वरिष्ठ वकीलों का विशेषाधिकार समाप्त?CJI की टिप्पणी से यह संकेत मिलता है कि अब वरिष्ठता के आधार पर प्राथमिकता नहीं दी जाएगी।जूनियर वकीलों को राहत: यह बदलाव कोर्ट की कार्यवाही को ज्यादा लोकतांत्रिक और समान अवसर देने वाला बना सकता है।प्रक्रियागत अनुशासन पर ज़ोर: कोर्ट अब चाहेगा कि सभी वकील निर्धारित प्रक्रिया के तहत ही मामलों को सूचीबद्ध करवाएं।कई वकीलों और कानूनी विशेषज्ञों ने इस कदम का स्वागत किया है। उनका मानना है कि यह निर्णय न्यायपालिका में पारदर्शिता, अनुशासन और समता को बढ़ावा देगा। वहीं, कुछ वरिष्ठ वकीलों का मानना है कि यह सुविधा अर्जेंसी के मामलों में बहुत सहायक होती थी और इसका समाप्त होना कभी-कभी न्याय में देरी का कारण भी बन सकता है।

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