क्या राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों (बिलों) पर राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा निर्णय लेने की कोई तय समयसीमा (टाइमलाइन) होनी चाहिए?”

सुप्रीम कोर्ट ने इस संवैधानिक मुद्दे पर सुनवाई के लिए केंद्र और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया है। यह मामला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु द्वारा अनुच्छेद 143 के तहत भेजे गए एक रेफरेंस (संदर्भ) से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने यह सवाल उठाया है कि:

क्या राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों (बिलों) पर राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा निर्णय लेने की कोई तय समयसीमा (टाइमलाइन) होनी चाहिए?”राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों (बिलों) पर राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा निर्णय लेने की कोई तय समयसीमा (टाइमलाइन) होनी चाहिए?”अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट से किसी कानून या संवैधानिक मुद्दे पर सलाह (advisory opinion) मांग सकती हैं।कई बार देखा गया है कि राज्यपाल विधेयकों को मंजूरी देने में देरी करते हैं, जिससे राज्य सरकारों और विधायिकाओं में असमंजस की स्थिति पैदा होती है।इसी संदर्भ में यह सवाल उठाया गया है कि क्या संविधान के तहत यह उचित है कि राज्यपाल या राष्ट्रपति असीमित समय तक किसी बिल को लंबित रखें, या फिर कोई निश्चित समयसीमा तय की जानी चाहिए।

कोर्ट ने केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों से इस मुद्दे पर जवाब मांगा है।यह भारत के संघीय ढांचे और संवैधानिक प्रक्रियाओं से जुड़ा एक अहम सवाल है, जिसका असर विधायी प्रक्रिया पर पड़ेगा।नियम के अनुसार, राष्ट्रपति की ओर से भेजे गए रेफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ही सुनवाई करती है और अपनी राय राष्ट्रपति को देती है। जो पीठ मामले पर मंगलवार को सुनवाई करेगी, उसमें प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा तथा जस्टिस एएस चंदुरकर शामिल हैं।

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