नवाज शरीफ ने संकटग्रस्त बलूचिस्तान के लिए ‘राजनीतिक समाधान’ का आह्वान किया

 

लाहौर: पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के अध्यक्ष नवाज शरीफ ने बलूचिस्तान में बिगड़ती स्थिति को लेकर गंभीर चिंता जताई है और वहां के संकट का समाधान सैन्य कार्रवाई के बजाय ‘राजनीतिक संवाद’ के माध्यम से तलाशने की वकालत की है। उन्होंने यह बयान उस समय दिया जब बलूचिस्तान में एक बड़े सैन्य अभियान की अटकलें तेज हो गई हैं।

नवाज शरीफ ने कहा कि बलूचिस्तान के लोगों को बार-बार नजरअंदाज किया गया है और उनकी आवाज को दबाया गया है, जिससे वहां असंतोष बढ़ा है। “हम बलूचिस्तान के लोगों को अलग-थलग नहीं कर सकते। पाकिस्तान की तरक्की और स्थिरता बलूचिस्तान की खुशहाली से जुड़ी हुई है,” उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा।

पूर्व प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि बलूचिस्तान में राजनीतिक असंतोष और सुरक्षा समस्याओं का स्थायी समाधान तब तक संभव नहीं है जब तक वहां के लोगों को सम्मान, अधिकार और प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाता। “हमें दिल से बलूच भाईयों के साथ संवाद करना होगा, न कि ताकत के दम पर उन्हें चुप कराने की कोशिश करनी चाहिए,” उन्होंने जोड़ा।

नवाज शरीफ ने बलूच नेताओं, नागरिक समाज, और सभी राजनीतिक ताकतों से अपील की कि वे एक साझा मंच पर आकर बातचीत करें ताकि एक स्थायी समाधान निकाला जा सके। उन्होंने कहा कि यदि पार्टी और सरकार उन्हें अवसर देती है, तो वे स्वयं बलूच नेताओं से मिलकर एक राष्ट्रीय संवाद की शुरुआत करेंगे।

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि बलूचिस्तान की समस्या केवल सुरक्षा का मामला नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दा है जिसे समझदारी से हल करने की जरूरत है। उन्होंने बलूचिस्तान में शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे के विकास को प्राथमिकता देने की बात कही।

इस बयान को पीएमएल-एन की बदली हुई रणनीति के रूप में देखा जा रहा है, जहां पार्टी अब बलूचिस्तान में अपने खोए हुए जनाधार को वापस पाने की कोशिश कर रही है। पिछले कुछ वर्षों में बलूचिस्तान में अलगाववादी आंदोलनों और आतंकवादी घटनाओं में वृद्धि हुई है, जिससे पूरे देश में चिंता का माहौल बना हुआ है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नवाज शरीफ का यह रुख आने वाले समय में पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति में अहम मोड़ ला सकता है। यदि राजनीतिक समाधान की दिशा में वास्तविक प्रयास होते हैं, तो इससे न केवल बलूचिस्तान की स्थिति सुधर सकती है, बल्कि पूरे देश में लोकतंत्र और सहमति की संस्कृति को भी बढ़ावा मिल सकता है।

बलूचिस्तान की जनता वर्षों से उपेक्षा और दमन का सामना करती आई है। अब देखना यह है कि नवाज शरीफ के इस राजनीतिक समाधान की पहल को सरकार और अन्य ताकतवर संस्थाएं कितना समर्थन देती हैं, और क्या यह पहल वास्तव में एक नया रास्ता खोल पाएगी या नहीं।

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