बिहार के पटना में विधानसभा भवन परिसर में आरजेडी (राष्ट्रीय जनता दल) के एमएलसी (मेंबर ऑफ लेजिस्लेटिव काउंसिल) ने समाज के कमजोर वर्गों, विशेष रूप से एससी/एसटी और पिछड़े वर्गों के लिए 65 प्रतिशत आरक्षण की मांग को लेकर जोरदार प्रदर्शन किया। यह प्रदर्शन राज्य में आरक्षण नीति को लेकर बढ़ते विवाद और राजनीति के बीच हुआ।
आरजेडी के नेता और एमएलसी ने राज्य सरकार से यह मांग की कि एससी/एसटी और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की सीमा को बढ़ाकर 65 प्रतिशत किया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि समाज के इन वर्गों को शिक्षा, रोजगार और सरकारी सेवाओं में समान अवसर नहीं मिल रहे हैं, इसलिए उन्हें अधिक आरक्षण की आवश्यकता है ताकि वे समाज में अपनी स्थिति को सुधार सकें और मुख्यधारा में शामिल हो सकें।
प्रदर्शनकारियों ने राज्य सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हुए अपनी आवाज उठाई और मांग की कि बिहार के राजनीतिक नेतृत्व को सामाजिक न्याय के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए। उनका कहना था कि कई सालों से इन वर्गों के लिए आरक्षण के मुद्दे पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं, जबकि अन्य वर्गों को विभिन्न क्षेत्रों में लाभ मिलते हैं।
यह प्रदर्शन ऐसे समय में हुआ जब राज्य में कई अन्य मुद्दों पर भी सियासी घमासान मचा हुआ था। आरजेडी के नेताओं का आरोप था कि सरकार समाज के कमजोर वर्गों की उपेक्षा कर रही है और उन्हें उनके अधिकार से वंचित रखा जा रहा है। इस बीच, विपक्षी पार्टियों ने भी आरजेडी के इस प्रदर्शन को समर्थन देने का ऐलान किया।
प्रदर्शन में शामिल लोगों का मानना था कि आरक्षण का उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों को बराबरी का अधिकार दिलाना है और इसे बढ़ाना इसलिए जरूरी है ताकि समाज में असमानता की खाई को कम किया जा सके। उनकी यह मांग भी थी कि सरकारी सेवाओं और शिक्षा के क्षेत्र में इन वर्गों को दी गई सुविधा में वृद्धि हो, ताकि उन्हें समाज में एक सम्मानजनक स्थान मिल सके।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी सरकार पर इस मामले को लेकर दबाव बढ़ गया है। हालांकि, मुख्यमंत्री ने पहले कहा था कि वे आरक्षण नीति में किसी भी तरह के बदलाव को लेकर विचार करेंगे, लेकिन इस तरह के प्रदर्शन के बाद सरकार को भी एक ठोस निर्णय लेना होगा।
आरजेडी का यह प्रदर्शन समाज के विभिन्न वर्गों को जोड़ने और उनके हक की लड़ाई को आगे बढ़ाने का एक प्रयास था। इस प्रदर्शन ने यह साफ कर दिया कि बिहार में आरक्षण को लेकर राजनीतिक दलों के बीच टकराव जारी रहेगा और यह मुद्दा चुनावी राजनीति में भी महत्वपूर्ण बन सकता है।

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