अजित पवार की जबरदस्त वापसी मालेगांव सहकारी साखर कारखाने के चुनाव में बड़ी जीत

महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री और एनसीपी (अजित गुट) के प्रमुख नेता अजित पवार ने 40 साल बाद सहकारी क्षेत्र में फिर से चुनाव लड़ा और ज़बरदस्त जीत दर्ज की। उन्होंने मालेगांव सहकारी चीनी मिल, बारामती के चुनाव में ‘बी’ श्रेणी (सहकारी संस्थाओं के प्रतिनिधियों) की सीट पर बड़ी जीत दर्ज की।कुल 101 वैध मतों में से 91 वोट अजित पवार को मिले।उनके प्रतिद्वंदी को मात्र 10 वोट मिले।यह चुनाव 22 जून 2025 को हुआ था, जबकि नतीजे 24 जून को आए।
मालेगांव सहकारी साखर कारखाना बारामती में स्थित एक महत्वपूर्ण सहकारी संस्था है, जिसे राजनीतिक रूप से अत्यधिक प्रभावशाली माना जाता है। इस चुनाव को सिर्फ एक मिल का चुनाव न मानकर, राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन का माध्यम माना जा रहा था।यह चुनाव विशेष इसलिए भी था क्योंकि यह मुकाबला एक ही परिवार के दो धड़ों –
अजित पवार (एनसीपी – अजित गुट)शरद पवार (एनसीपी – शरद गुट)

के बीच प्रत्यक्ष रूप से देखा गया।चुनाव में कुल 19,549 A श्रेणी के मतदाता (गन्ना उत्पादक किसान) और 102 B श्रेणी के मतदाता (सहकारी संस्थाएं) थे।
यह सिर्फ मेरी नहीं, पूरे नीलकंठेश्वर पैनल की जीत है। सहकार क्षेत्र में यह नया इतिहास रचा गया है। किसान और सहकारी संस्थाओं ने मुझ पर जो भरोसा दिखाया है, मैं उसका सम्मान करूंगा और हमेशा उनके हित में काम करूंगा।”
महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एवं एनसीपी नेता अजित पवार ने बारामती स्थित मालेगांव सहकारी चीनी मिल बोर्ड चुनाव में ‘B’ श्रेणी से शानदार जीत दर्ज की। उन्होने 101 में से 91 वोट पाकर बढ़त बनाई, जबकि उनके प्रतिद्वंदी को केवल 10 वोट मिले ।यह चुनाव 22 जून 2025 को संपन्न हुआ; मतगणना की प्रक्रिया 24 जून भी जारी रही ।कुल 19,549 ‘A’ श्रेणी (गन्ना किसान) वोटर और 102 ‘B’ श्रेणी (सहकारी बोर्ड सदस्यों) वोटर थे ।
अजित पवार ने नीलकंठेश्वर पैनल का नेतृत्व किया; Sharad Pawar नेतृत्व वाली NCP (SP) और Chandrarao Tawre की Sahakar Bachav पैनल भी मैदान में थीं ।
चरित्र का समारोह – यह चीनी मिल चुनाव राजनीतिक प्रतिष्ठा और प्रभाव का प्रतीक माना जाता है; इस जीत से पवार परिवार की पकड़ मजबूत हुई ।
2. 40 वर्षों का इंतज़ार – अजित पवार ने पिछली बार 1984 में को‑ऑप चुनाव लड़ा था; इस बार वे फिर फ्रंटलाइन पर आए ।
3. राजनीतिक टकराव – यह मुठभेड़ दो प्रतिनिधि पैनलों – उनके अपने और चाचा शरद पवार वाली NCP (SP) – के बीच थी, जिससे स्थानीय राजनीति में वैचारिक खिंचाव और बढ़ा ।

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