सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना: कानून के ऊपर या नीचे?

 

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में एक अहम आदेश जारी किया था, जिसमें कारों में काले कांच (ब्लैक फिल्म) के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया गया था। इस आदेश का उद्देश्य सड़क पर सुरक्षा बढ़ाना, यातायात नियमों का पालन करना और दुर्घटनाओं की संभावना को कम करना था। कोर्ट ने कहा था कि काले कांच से दृष्टि में रुकावट होती है, जो पुलिस और अन्य सुरक्षा एजेंसियों के लिए समस्याएं पैदा कर सकती है। इसके अलावा, यह सुरक्षा के लिहाज से भी खतरनाक हो सकता है, क्योंकि दुर्घटनाओं के दौरान घायल व्यक्तियों की पहचान और सहायता में देरी हो सकती है। हालांकि, इस आदेश के बावजूद महाराष्ट्र में इसका पालन नहीं किया जा रहा है, और यह एक गंभीर मुद्दा बन चुका है।

महाराष्ट्र में काले कांच की कारों का चलाना लगभग एक फैशन बन गया है। यहां तक कि कई लोग अपनी कारों में काले कांच लगाने को अपनी शान समझते हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद, प्रशासन इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर रहा है। यहीं नहीं, राज्य में यातायात पुलिस भी इस मामले में बेखबर नजर आती है। ऐसा प्रतीत होता है कि महाराष्ट्र के प्रशासन में राजनेताओं का दबाव इतना अधिक है कि यातायात नियमों का उल्लंघन करने वाले कार मालिकों के खिलाफ कोई सख्त कदम नहीं उठाए जाते।

इसके बजाय, इन कारों को संरक्षण देने की प्रवृत्ति देखी जा रही है। कार मालिकों के द्वारा काले कांच का प्रयोग करना एक चुनौती बन चुकी है, और ऐसे मामलों में पुलिस अक्सर मूकदर्शक बनी रहती है। इस स्थिति का कारण यह हो सकता है कि कुछ प्रमुख व्यक्तियों या राजनेताओं के पास ऐसी कारों का इस्तेमाल होता है, और प्रशासन या पुलिस उन्हें किसी भी तरह की परेशानी से बचाने के लिए कार्रवाई नहीं करती है। यही कारण है कि यह समस्या बढ़ती जा रही है, और इसका कोई ठोस समाधान नहीं निकल रहा है।

यातायात पुलिस का कार्य केवल नियमों का पालन सुनिश्चित करना नहीं है, बल्कि सार्वजनिक सुरक्षा सुनिश्चित करना भी है। जब काले कांच की कारों की बढ़ती संख्या को देखा जाता है, तो यह प्रश्न उठता है कि क्या प्रशासन और पुलिस इस दिशा में अपनी जिम्मेदारी सही से निभा रहे हैं? क्या उन्हें इन नियमों का पालन करवाने के लिए सख्त कदम नहीं उठाने चाहिए?

काले कांच वाली कारें सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक हो सकती हैं, क्योंकि दुर्घटना के दौरान ये कांच गाड़ी में बैठे लोगों को बचाव के कार्यों से भी दूर कर सकते हैं। इसके अलावा, काले कांच के कारण पुलिस और अन्य सुरक्षा एजेंसियों को गाड़ी के अंदर के लोगों की पहचान में भी समस्या हो सकती है, जो कि आपातकालीन परिस्थितियों में काफी महत्वपूर्ण हो सकता है।

अगर राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन इस दिशा में सख्त कदम नहीं उठाते हैं, तो यह स्थिति और भी जटिल हो सकती है। काले कांच पर प्रतिबंध को लागू करना चाहिए, और इसके उल्लंघन के लिए सख्त सजा निर्धारित करनी चाहिए। इसके अलावा, समाज में जागरूकता फैलाने की भी आवश्यकता है, ताकि लोग समझ सकें कि यह केवल कानून का उल्लंघन नहीं है, बल्कि एक सामाजिक और सुरक्षा से जुड़ा हुआ मुद्दा है।

महाराष्ट्र में प्रशासन और पुलिस को अब इस मुद्दे पर ध्यान देना चाहिए और सुप्रीम कोर्ट के आदेश को सही तरीके से लागू करना चाहिए।

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