परंपरा और संस्कृति का अनोखा संगम: गोवा के सांजाव और सांगोद महोत्सव

गोवा केवल अपने समुद्र तटों और नाइटलाइफ के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां के सांजाव और सांगोद जैसे पारंपरिक उत्सव इसकी जीवंत लोक-संस्कृति का सुंदर प्रतिबिंब हैं। ये उत्सव गोवा की बहु-आयामी सांस्कृतिक पहचान और मानसून की खुशी को दर्शाते हैं।सांजाव (Sao Joao) गोवा का एक पारंपरिक ईसाई त्योहार है, जो हर साल 24 जून को सेंट जॉन द बैपटिस्ट की याद में मनाया जाता है।युवा पुरुष कुएं, तालाबों, झीलों में छलांग लगाते हैं, जो एक तरह से मानसून की शुरुआत का स्वागत और समृद्ध फसल की प्रार्थना होती है।नवविवाहित परिवारों को आमंत्रित कर उनसे पारंपरिक उपहार लिए जाते हैं, जिसे स्थानीय भाषा में “रोस” कहा जाता है।
का उत्सव है। यह कैथोलिक संत जान द बैपटिस्ट की जयंती के रूप में मनाया जाता है। जब जान मां एलिजाबेथ के गर्भ में थे, तो एक दिन एलिजाबेथ अपनी रिश्तेदार मरियम से मिलने पहुंचीं। वहां मरियम की आवाज सुन जान अपनी मां के पेट में उछल पड़े। जान के इसी उछलने की याद में गोवा के कैथोलिक युवा कुओं और तालाबों में कूदते हैं। जब यह उत्सव मनाया जाता है, उस समय तक गोवा में मानसून आ चुका होता है। गोवा की सड़कों एवं अलग-अलग बस्तियों में भी सजे-धजे लोग नाचते-गाते हुए जुलूस निकालते हैं और चर्चों की सजावट भी की जाती है।

यह भी पढ़ें- किसी राजसी महल से कम नहीं है जैसलमेर की ‘पटवों की हवेली’, 50 सालों में बनकर हुई थी तैयारइस परंपरा का एक भाग पारिवारिक भी है। इस दिन नवविवाहित दामादों को उनकी ससुराल में दोपहर के भोजन के लिए भी आमंत्रित किया जाता है। दामाद के ससुराल पहुंचने पर आतिशबाजी कर स्वागत किया जाता है। उसके बाद पूरा परिवार साथ बैठकर संत जान, वर्जिन मैरी एवं अन्य संतों के सम्मान में भजन गाते हैं। दोपहर के भोजन में चावल एवं नारियल के पानी से बना केक, पोर्क विंडालू, नारियल के दूध में कद्दू को पकाकर बनाया गया वर्दुर एवं ताड़ के गुड़ से बनाई गई मिठाई पाटोलियो तैयार की जाती है। दामाद को विदा करते समय सास उसे भेंट स्वरूप फलों और मिठाइयों से भरी टोकरी देती है। जिसे दामाद अपने घर लेकर जाता है और वहां पूजा-पाठ के बाद उस टोकरी की मिठाइयां और फल अपने पूरे गांव में बांटता है। वैसे भी इस उत्सव में लोग एक-दूसरे के घरों में मिठाइयों का आदान-प्रदान करते हैं।
निकलता है रंग-बिरंगा जुलूस

सांजाव उत्सव के ठीक पांचवें दिन 29 जून को हर साल सांगोद उत्सव भी मनाया जाता है। यह उत्सव विशेष रूप से गोवा के मछुवारा समुदाय में मनाया जाता है। मछुवारे यह उत्सव ईसा मसीह के 12 प्रचारकों में से एक संत पीटर को याद करते हुए मनाते हैं। वह इस दिन पीटर की पूजा करते हुए उनसे समुद्र में अपनी रक्षा एवं व्यावसायिक उन्नति की कामना करते हैं। उत्सव के रूप में छोटी-छोटी कई नौकाओं को एक-दूसरे से जोड़कर उन पर एक मंच बनाकर उसे चर्च का रूप प्रदान करते हैं और वहां संत पीटर एवं संत पाल के सम्मान में भजन-कीर्तन होता है।
बाद में कई नावों को जोड़कर बनाए गए इस बेड़े को नदियों एवं समुद्र में कुछ दूर तक तैराकर ले जाया जाता है। एक साथ अनेक समूहों द्वारा नदियों में निकाले जाने वाले इन रंग-बिरंगे नौका जुलूसों से अति मनोहर दृश्य पैदा होता है। इस उत्सव के दौरान मछुवारा समुदाय द्वारा आपस में कई तरह की प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाता है।
इन त्योहारों का उद्देश्य केवल परंपरा का निर्वहन नहीं है, बल्कि यह प्रकृति से जुड़ाव, सामुदायिक एकता, और सांस्कृतिक गौरव को भी दर्शाते हैं। मानसून के मौसम में यह उत्सव गोवा को एक जीवंत, रंगीन और आनंदमय ऊर्जा से भर देता है।

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